भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुड़िया-11 / नीरज दइया
Kavita Kosh से
(गुड़िया-11/ नीरज दइया से पुनर्निर्देशित)
तुम्हारे भीतर
और भीतर
उतरने की चाह
अब भी जिंदा है
कब तक रहोगी
किनारों से लिपटी तुम
एक दिन तुम्हें
जब छोड़ कर किनारे
बीच भंवर में
आना ही होगा
अपनी जिंदगी ढूँढने।