भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुड्डा-गुड़िया / प्रयाग शुक्ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह है गुड़िया, वह है गुड्डा
वह है बुढ़िया, वह है बुड्ढा!
सोच रही हूँ इक दिन गुड़िया,
हो जाएगी बिल्कुल बुढ़िया।
हो जाएगा इक दिन बुड्ढा,
मेरा इतना प्यारा गुड्डा!

हिला करेगा सिर बुढ़िया का,
मेरी इस प्यारी गुड़िया का!
लाठी टेक चलेगा गुड्डा,
लोग कहेंगे इसको बुड्ढा!

मैं किससे, किससे, झगडूँगी,
किसका-किसका मुँह पकडूँगी।
यही सोचकर मैं चकराई,
इन्हें बनाकर मैं पछताई!

मेरी प्यारी-सी यह गुड़िया
गुड़िया बुढ़िया, गुड्डा बुड्ढा!