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गुनगुनायेंगे अधर तो / एक बूँद हम / मनोज जैन 'मधुर'

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वेदना की कोख से
जन्मा हुआ मैं गीत हूँ
देख लेना एक दिन
मुझको जमाना गायेगा

मैं हृदय की धड़कनो में
आदि से जीता रहा हॅूं
घूंट में विदू्रपता के
सर्वदा पीता रहा हूँं
मैं युगों से चेतना को
बंद में बांधे खड़ा हूँ
एक नन्हीें किरण थामे
घूप अन्धेरों से लड़ा हूँ

ज्योति पूंजो को समर्पित
मै शलभ का मीत हॅूं
भोर तक अस्तित्व मेरा
अब न मिटने पायेगा
छनद में सम्वेदना
अॅंगड़ाइयॉं लेती रही है
भावना मेरे हृदय की
व्यथा को सेती रही है
साधना से मै सदा
ऊंचाइयॉं चढ़ता रहा हूँं
ब्रम्ह वंशज छन्द के
प्र्रतिमान नित गढ़ता रहा हूँ

कंठ से जन्मा हुआ मैं
सत्य का संगीत हूँ
है सुनिश्चित राग मेरा
इक नया युग लायेगा

मैं सुकवि की आत्मा हूँ
प्राण का पर्याय भी हूँ
विश्व की चिन्ता समेटे
दर्द का अध्याय भी हूँ
शारदा की साधना का
जागता प्रतिरूप हूँ मैं
चन्द्र हूँ मैं, धूप हूँ मैं

देह में लय को समेटे
सत्य कालातीत हूँ
गुनगुनाएँगे अधर तो
सॉंस को महकायेगा