भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुम जो यादों की डायरी हो जाए / राज़िक़ अंसारी
Kavita Kosh से
गुम जो यादों की डायरी हो जाए
ख़ाली ख़ाली ये ज़िन्दगी हो जाए
ऐसी दीवानगी से क्या मतलब
बात हम से जो होश की हो जाए
आंसुओं से दिये जलाते चलो
कुछ तो रस्ते में रोशनी हो जाए
आ चुका वक़्त गर जुदाई का
काम ये भी हंसी खुशी हो जाए
क़तरा क़तरा हयात क्या जीना
जो भी होना है वो अभी हो जाए
करते चलिए हिसाब ज़ख्मों का
कब कहां ख़त्म ज़िन्दगी हो जाए