गुरतुर बोली / चेतन भारती
हिरदे मा प्रेम के रोपा लगाके,
दुनियां मा नाम जगावव जी ।
राहटा के बाणी ला बाहिर करके,
मीठा जबान बनावव जी II
चारेच दिन के ये मेला
के दिन हमला रहना हे ।
मूठा बंधे हम आयेन संगी
अब हाथ पसारे जाना हे ।
मानुष तन तो संग नइ देवे,
सबे धन दौलत तो खोना हे II
सुख दुख ला अबे मिलके बांटी
चलव जुर के रद्दा चतवारव जी।
बड़े बिहिनिया के सुकुवा उगे,
बाट तुंहर अब देखत हे ।
सुंदर अंकन ले अंगना लिपके,
चंदा, फूल बिछाये जोहत हे ।
तोरे अमृत ला झोके खातिर
धरती हरियर ओसारी बनावत हे।
अकरस भकरस के झमेला छोड़के,
मन मौहा ला अब चल फैंकव जी ।
कतेक जतन मा ये तन पायेन,
अब बिरथा येला नइ करना हे ।
जुआं जाडी ला कान पकड़ के।
घर ले बाहिर करना है ।
कतको डेहरी के दिया बुझागे
अब ये हरहर कट कट ल करना हे I
गुरतुर बोली कंठ मा बसाके I
अपन भाग ला फुरहुर बनावनी II