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गुरु-दीक्षा / शचीन्द्र भटनागर

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सद्गुरु गंगातट आए हैं
आओ जीवन धन्य बना लो

जिन्हें न गुरु मिल पाता
उनको कहते हैं सब लोग निगोड़े
ऊपर जाकर सहने पड़ते
उनको यमदूतों के कोड़े

गहकर गुरु की शरण
स्वयं को महादण्ड से आज बचा लो

अहोभाग्य गुरु स्वयं आ गए
करने को कल्याण तुम्हारा
किसे पता है
मिले ना मिले यह अवसर फिर तुम्हें दुबारा

गया समय फिर हाथ न आता
दीक्षा लेकर पुण्य कमा लो

देख-देख हर कर्मकाण्ड में
प्रतिदिन होती लूट यहाँ पर
कृपासिन्धु गुरु जी ने
दीक्षा में दी भारी छूट यहाँ पर

मिली छूट का
समझदार बन इसी समय शुभ लाभ उठा लो

एक नारियल,
पंचवस्त्र के संग पंचमेवाएँ लेकर
और पंच मिष्ठान्न, पंचफल,
पंचशती मुद्राएँ लेकर

सद्गुरु के श्रीचरणों पर
अर्पित कर कृपा-अनुग्रह पा लो

शरणागत पा तुम्हें
कान में मन्त्र तुम्हारे वह फूकेंगे
तीन लोक में
सात जन्म तक वह तुमको संरक्षण देंगे

सद्गुरु तथा शिष्य का नाता
अपने हित के लिए निभा लो

डरो नहीं
जीते हो जैसे जीवन वैसे ही जी लेना
शिष्यों की जीवन-शैली से
उन्हें नहीं कुछ लेना-देना

विगत-अनागत दोनों के ही
सभी कर्मफल क्षमा करा लो ।