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गुरु के सबद-बाण, छतिया समाइ गेलै / छोटेलाल दास
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गुरु के सबद-बाण, छतिया समाइ गेलै।
टीस मारै दिन अरु रात॥1॥
जोगिनी के भेष लेबै, घर-द्वार छोड़ि देबै।
होइ जैबै जग सें उदास॥2॥
सतगुरु-संग जैबै, फेरु नहिं घर ऐबै।
रहि जैबै गुरु-दरबार॥3॥
जैसें के राखतै गुरुँ, वैसैं के रहिबै हम।
करबै पालन उपदेश॥4॥
गुरुँ जे खिलैतै खैबै, गुरुँ जे पिन्हैतै पिन्हबै।
कहियो नैं करबै मन छोट॥5॥
सब सुख छोड़ि देबै, सब दुख सहि लेबै।
सेवा में गलैबै येहो देह॥6॥
डाँटतै जौं गुरुँ मोरा, मारतै जौं गुरुँ मोरा।
तइयो नैं तजबै गुरु-सेव॥7॥
किछुओ नैं कहबै हम, किछुओ नैं माँगबै हम।
उमर बितैबै यहि भाँति॥8॥
येहो समदन सखी, ‘लाल दास’ गैलकै हे।
करि लेहो मन में विचार॥9॥