भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुलज़ारे-हस्ती-बूद न बेगानावार देख / इक़बाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गुलज़ारे-हस्ती-बूद न बेगानावार देख

है देखने की चीज़, इसे बार-बार देख


आया है तू जहाँ में मिसाले-शरार देख

दम दे न जाए हस्ती-ए-नापायादार देख


माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं

तू मेरा शौक़ देख, मेरा इंतिज़ार देख


शब्दार्थ :

गुलज़ारे-हस्ती-बूद न बेगानावार देख=जीवन के बग़ीचे को उदासीन नज़र से न देख; मिसाले-शरार=चिंगारी की भाँति; हस्ती-ए-नापायादार=नाशवान जीवन; दीद=देखने