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गुलदस्ता / अंतर्यात्रा / परंतप मिश्र

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सुंदर, मनमोहक पुष्पों का
संग्रह कर मैंने
एक गुलदस्ता बनाया है
सिर्फ तुम्हारे लिए
इनकी भोली सम्वेदनाएँ
मेरे सन्देश लेकर
बह चली हैं तुम तक

मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ
मात्र वार्ता के लिए ही नहीं
जहाँ केवल मौखिक शब्दों का
आदान-प्रदान भर हो सके
यह तो भौतिक जगत में
परिचय का आधार,
प्रथम तल है

उससे कहीं ऊपर जो
दूसरा तल है बुद्धि का
जो तर्क और वितर्क की
अंतहीन यात्रा को उपलब्ध हो
ज्ञान और अहंकार की तुष्टि
वहां भी नहीं रुक सकता

मिलना है तुमसे जहाँ
वार्ता मौन हो जाती है
बुद्धि की सीमा से परे
उस तीसरे और अंतिम
तल की गहराइयों में जहाँ है
स्पंदन की मधुर प्रतीति

हृदय की भूमि में
अनंत यात्रा के पथ पर
सुंदर बीजों का अंकुरण हो सके
आत्मा की गीली मिटटी से
जन्म ले सके नवजात कली
बिखेर दे जो ब्रह्मांड में
सुगंध, प्रेम और आनन्द का
अक्षय भंडार
हृदय से हृदय तक