गुलबदन, गुल पैरहन गुंचा दहन याद आ गया / नज़ीर बनारसी
गुलबदन, गुल पैरहन <ref>लिबास</ref> ग़ुंचा <ref>कली</ref> दहन <ref>मुँह</ref> याद आ गया
जिस चमन में भी गये अपना चमन याद आ गया
धूप खायी गेसुए साया फिगन <ref>सायादार</ref> याद आ गया
जब हुई तकलीफ गुरबत <ref>परदेश</ref> में वतन याद आ गया
गिर गयी मेरी निगाहों से बहारे रंग-रंग
एक ऐसा हुस्न सादा पैरहन याद आ गया
सामने से कोई गुरजा आज इस अंदाज से
जिन्दगी को अपना खोया बाँकपन याद आ गया
आईने में अपने बालों की सफेदी देख कर
याद करता था जवानी को कफन याद आ गया
शहर में भी र हके दीवाना सँभल जाता मगर
शहरियों ने वो सितम ढाये कि बन याद आ गया
एक परदेशी से कर ली आज तुमने दोस्ती
क्या करोगे कल अगर उसको वतन याद आ गया
चौकड़ी भरते नहीं देखा कई दिन से ’नजीर’
हिरनियों को क्या कोई जख्मी हिरन याद आ गया