भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुलशन में लेके चल किसी सहरा / इब्राहीम 'अश्क़'
Kavita Kosh से
गुलशन में लेके चल किसी सहरा में ले के चल
ऐ दिल मगर सुकून की दुनिया में ले चल
कोई तो होगा जिसको मेरा इंतज़ार है
कहना है दिल के शहर-ए-तमन्ना में ले के चल
ये प्यास बुझ न पाई तो मैं डूब जाउँगा
साहिल से दूर तो मुझे दरया में ले के घल
पहचानता नहीं है मेरा नाम 'कैस' है
ऐ खिज़्र-ए-राह कूचा-ए-लैला में ले के चल