{{KKParichay |चित्र=Shakeel_bandayuni.jpg |नाम=शकील शकील बदायूँनी
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गुलशन हो निगाहों में तो जन्नत न समझना दम भर की इनायत को मोहब्बत न समझना
क्या शै है मता-ए-ग़मो-राहत1 न समझना जीना है तो जीने की हक़ीक़त न समझना
हो खै़र तेरे ग़म की कि हमने तेरे ग़म से सीखा है मसर्रत को मसर्रत न समझना
निस्बत2 ही नहीं कोई मोहब्बत को खि़रद3 से ऐ दिल कभी मफ़हूमे-मोहब्बत4 न समझना
ये किसने कहा तुमसे कि रूदादे-वफ़ा को5 सुनकर भी समझने की जरूरत न समझना
1. दुख-सुख रूपी पूंजी 2. सम्बन्ध 3. अक्ल 4. प्रेम का अर्थ 5. वफ़ा की कहानी को </poem>