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गुलाबों की आन्धी में / इंगेबोर्ग बाख़मान्न / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
जब हम
गुलाबों की आन्धी में
बदल जाते हैं
चाहे हो ऐसा कहीं भी
काँटों से
और पत्तियों की झनझनाहट से
जलने लगती हैं रातें
जंगल के भीतर
चुपचाप
कुलबुलाते हैं
ऊँची एड़ियों वाले हमारे जूते।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय