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गुलाब और कविता / गुलशन मधुर
Kavita Kosh से
शहर के बीचोंबीच
अनधिकार फैलते
मौक़ापरस्त खरपतवार
और अराजक घास के
मुंहज़ोर जंगल में
बिना किसी चेतावनी के
खिल गया है
मंद मंद मुस्कुराता
एक ढीठ गुलाब
शायद ऐसे ही
न जाने कहां से
जीवन का रस खींच
मन के बंजर में
उग आती है कविता