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गुलाब का क़सीदा / फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का
Kavita Kosh से
गुलाब ने सुबह नहीं चाही अपनी डाली पर चिरन्तन
उसने दूसरी चीज़ चाही
गुलाब ने ज्ञान या छाया नहीं चाहे
साँप और स्वप्न की उस सीमा से
दूसरी चीज़ चाही
गुलाब ने गुलाब नहीं चाहा
आकाश में अचल
उसने दूसरी चीज़ चाही !
अंग्रेज़ी से अनुवाद : विष्णु खरे