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गुलाब की कलम / राहुल शिवाय

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हाथों में
मेरे गुलाब की
एक कलम है
खोज रहा हूँ
धरती इसको कहाँ रोप दूँ

घर के जिस
कोने में
तुलसी सूख रही है
उस कोने में
क्या यह पोषण
को पाएगी
जिस बरगद के
नीचे धूप
नहीं आती है
क्या यह
अपनी बाँह
वहाँ पर लहराएगी

जहाँ सभी ने
अपना-अपना
रखा हरम है
खोज रहा हूँ
धरती इसको कहाँ रोप दूँ
इस घर में
धरती से ज़्यादा
चट्टानें हैं,
क्या इसकी
कोमल जड़ को वे
बढ़ने देगीं
जहाँ रोज़
पत्थर पर पत्थर
बोते हैं सब
वहाँ इसे क्या
कोमल मन को
गढ़ने देंगीं

जहाँ हृदय ने
कृत्रिमता का
रखा भरम है
खोज रहा हूँ
धरती इसको कहाँ रोप दूँ।