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गुस्ताखी / संगीता कुजारा टाक

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पेड़ पौधों से
हमारी अनबन हो गई है

विकास की
यह कैसी
हवा बह गई है

नदियों को
छोड़ दिया है
हमने बेपरवाह...
प्लास्टिक, कूड़े-कचरे
और रसायनिक मलबों के लिए

भगीरथ के वंशजों से जाने
कैसी गुस्ताखी हो गई?