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गूलर / अम्बर रंजना पाण्डेय
Kavita Kosh से
तुम तो कहते थे गूलर दिख जाने
से दारिद्रय आता हैं । कोढ़ी
बता गए नागार्जुन भी इसे पर
गुंफित डालियों पर गुल्म गोदों
का हर्ष से भरता हैं ज्यों दूध से
यह गूढ़, गुथुवन तना भरा है ।
मारी गुच्छों पर गुलेल से गोटियाँ
गिरा दिए आठ-दस फल । फूटा
डंठलों से दूध । हेमदुग्धा यों ही
न कह गए पुरातन कवि । ऐसी
श्री किसके निकट हैं, कहो तो! तब क्यों
कटाते हो ? रह भी जाने दो ।
जब बचेगी न साग न कोदों घर में;
खाया करेंगे गोदों ढेर ।