गृहस्थी / सौमित्र सक्सेना
देखों धूप निकल आई है
बारिश के बाद
आकाश के आँगन में
नहाने के बाद
नीलम आ बैठी है बाल सुखाने ।
धरती पर
मेरे बगीचे में
बरगद की गीली डाली पर
पक्षियों का जोड़ा एक
पुलके से पंख खोल
पानी की बूँदों को झुर झुर के झाडता है।
मैने उन दोनो को नाम दे रखे हैं-
सुमन और सुनंदा।
सुमन फुदककर
सुनंदा के चारों ओर उड़कर
पानी के छीटें
गिराता है बार-बार
सुनंदा चीं-चीं करती
डाली पर इधर उधर
थिरकती है ज़ोर से
फिर उड़कर
पेड़ की टपकती अंजुरियों
से गुज़र
छिप जाती है
सुमन उल्लास से
निहारता है सब लताओं पत्तियों
और डालियों को
ढूँढता है पगला सा सुनंदा को-
वो.... वो.... वहाँ....।
उसने ढूँढ़ निकाला उसे
अब दोनों
उसी छिपी डाल पर
धीमें से चहचहाते हैं-
पर ये क्या
आवाज़ें दब गई हैं
सुमन और सुनंदा घोसले को लौटे हैं
यहाँ कई
छोटी-छोटी
अधखुली पलकें
बारीक चोंचों को चीरती
हिलती हैं धीरे धीरे ।
बारिश मे दाना बह गया है
सुनंदा पुचकारती-सी
पूरे पंख खोल
ढाँप लेती है बच्चों को-
सुमन उड़ता है
बहुत दूर
वहीं
जहाँ आकाश की नीलम
अपने नाल सुखाती है
बारिश के बाद।