भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गेहूँ का दाना / गुँजन श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
गेहूँ के उस एक दाने को
नही मालूम :
उसमें एक गेहूँ का समूचा
पौधा होने की क्षमता है
कि वो भर सकता है
एक गौरैया के बच्चे का
समूचा पेट !
उसे नही मालूम कि वो
दुनियाभर के तमाम
आन्दोलनों की नींव है !
न ही वो जानता है कि
इसके अलावा है
वो एक रोटी का हिस्सा भी
उस एक रोटी का हिस्सा
जो उस एक आदमी की जान बचा सकता है
जिसमे अकेले ही इस दुनिया को
पलट देने की क्षमता है !