पाबि प्रभुक आदेश स्वयं हिंसामय जकर प्रवृत्ति
चलि पड़ले तत्काल करय उत्फाल पाशवी वृत्ति
असुर आततायी जत-तत घुमइत बढ़वय आतंक
मारय-पिटय धेनु-धन छीनय उपद्रवी निःशंक
आजिज आबि गोकुलक जनता नन्द महर लग आबि
कहल, एतय नितप्रति उपद्रवहि बुझि न पड़य की भावि
शिशुक चोरि बढ़ि गेल, कतहु नहि ग्वाल-बाल बहराय
गाय चरायब एतय कठिन अछि, हम सब छी निरुपाय