गोटी के वलसे मैनाके पास जाना / प्रेम प्रगास / धरनीदास
चौपाई:-
चल्यो कुंअर अति वेग उडाई। डेढ पहरमंह अमरे जाई॥
जँहवा पर्वत पति अस्थाना। कोस पचास करे परमाना॥
जैह विश्राम करे वह राऊ। मैना रहे सदा तेहि ठांऊ॥
गये कुंअर पुर देख्यो जाई। नगर अपूरब देखि सोहाई॥
पुनि चलि गयउ जहाँ गृहराजा। तांबा को टिकनक दर्वाजा॥
विश्राम:-
अन्तःपुर बहु अन्तरे, देख्यो पंखि सुजान।
मुख गोटी किहु वाहरे, उतरे ता सनिधान॥90॥
चौपाई:-
लेपिंजरा उर अन्तर लाऊ। दुवो परस्पर कियउ वधाऊ॥
युगल अनंद भये सब गाता। जनुपतझार निकस नवपाता॥
कह मैना सुनु कुंअर सुजाना। तुम मोहि लागि दियहु कत प्राना॥
कहयो कुंअर गोटी परकारा। यहि वल पायों दरस तुम्हारा॥
पंखी कहयो भयो वडकाजा। गवन्यो आजु अखेटको राजा॥
यहि क्षण कुंअर करो अतुराई। परमेश्वर अब भयउ सहाई॥
विश्राम:-
पुनि गोंटी मुखमें दियो, मैनहि दिया उडाय।
क्षण चारि दिन आछतै, आसन अमरे आय॥96॥