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गोतनी के जार / प्रदीप प्रभात

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गोतनी के जार, खुनी-खुनी मार।
लक्ष्मी घोॅर दलीद्दर बहार॥
खड़सुप्पोॅ पर डौआ के मार।
तीन डौआ में, एक डौआ साफ॥
दू महीना में एक दिन लेट्रीन साफ।
लक्ष्मी घोॅर दलीद्दर बहार॥
बहुओं के बातों पर रोजेॅ कचार।
गोतनी के जार, खुनी-खुनी मार॥
भौजी चलतेॅ बंटतै सब्भेॅ।
कैनेॅ की? भैया छै लचार॥

खड़सुप्पोॅ पर डौआ के मार।
लक्ष्मी घोॅर दलीद्दर बहार॥
छोटका छे वारोॅ-कुमारोॅ।
रहतै मय्योॅ-बाबू के साथ॥
गोतनी के जार, खुनी-खुनी मार।
लक्ष्मी घोॅर दलीद्दर बहार॥
मंझला तेॅ अल्हा जुगा फानै छै।
बड़का छै बोतू सरदार॥
गोतनी के जार, खुनी-खुनी मार।
लक्ष्मी घोॅर दलीद्दर बहार॥

छोटका के मत पूछोॅ।
उड़ै मोटर साइकिल पर सवार॥
कमली-झमली दु बहिना।
ई दू चलतैॅ होय तकरार॥
गोतनी दोनोॅ रण चण्डी।
खड्ग लेने छै तैयार॥
गोतनी के जार खुनी-खुनी मार।
लक्ष्मी घोॅर दलीद्दर बहार॥
बाबू रोॅ पेंशन पर।
होॅय छै रोजेॅ कचार॥
खड़सुप्पोॅ पर डौआ के मार।
लक्ष्मी घोॅर दलीद्दर बहार॥