गोधों की लड़ाई / मानिक बच्छावत
सांड को लोग इस शहर में गोधा कहते हैं
यह शब्द यहाँ की बोली में
प्रयुक्त होता है सारे शहर में
गोधे निस्संग घूमते देखे
जा सकते हैं इनको लोग पालते
पोसते हैं और यदा कदा उनको
शहर के नामी चौकों में
जैसे कोचरों का चौक, दस्साणियों
का चौक, ढढ्ढों का चौक,
बैदों का चौक, दामाणियों का
चौक, मोहतों का चौक आदि
आदि में टोर कर लाते हैं
और उनको लड़ाते हैं
गोधों का युध्द देखने सैकड़ों लोग
जमा होते हैं और बाजी लगाते हैं
गोधों के अलग-अलग नाम होते हैं
जैसे भूरिया कालिया लालिया गोरिया
कबरिया सूरजिया चांदिया या
लगाड़िया आदि आदि, जो
गोधा युध्द में जीतता है उसे
गुड़ आदि खिलाया जाता है
गोधों को लोग शिवजी की
सवारी मानते हैं अत: उनका
सम्मान करते हैं, इनका यद्ध
देखकर स्पेन के
माद्रिद शहर की याद आती है
जहाँ बड़े-बड़े एंपीथिएटरों में
बुलफाइट का आयोजन कायदे से
होता है, मेटाडोर लोग इनको
उकसाते हैं और बिगुल आदि
बजाए जाते हैं और फिर ठनता है
एक दूसरे को पछाड़ने का खेल
जो पराक्रमी होता है वह
विजयी होता है
पर इस शहर के गोधों का
युध्द बिल्कुल देसी ढंग से
होता है, बड़े-बड़े चौक यहां
इसकी युध्दभूमि का काम करते हैं
लोग गोधों को उकसाने उनकी
पूंछ मरोड़ते दौड़ाते हैं और
ऊभैं ऊभैं करते हुंकारते हुए गोधे
भिड़ जाते हैं, जिसने गोधों के
युध्द का नजारा इस शहर में
नहीं देखा उसने बहुत कुछ
नहीं देखा
बदलते समय में
ये दृश्य अब लुप्त होते जा रहे हैं।