गोपालहिं माखन खान दै।
सुनु री सखी को जिनि बोले बदन दही लपटान दै॥
गहि बहिया हौं लै कै जैहों नयननि तपनि बुझान दै।
वा पे जाय चौगुनो लैहौं मोहिं जसुमति लौं जान दै॥
तुम जानति हरि कछू न जानत सुनत ध्यान सों कान दै।
सूरदास प्रभु तुम्हरे मिलन कों राखौं तन मन प्रान दै॥