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गोरी बेटी अँगहुँ के पातर, अँखिया मिरिग मारै हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पतली कमर और हिरण-सदृश आँखों वाली सुन्दरी प्रसव-वेदना से व्याकुल है। सास, ननद, प्रियतम सभी अलग-अलग सोये हैं, वह किसे खबर दे। अन्त में, वह अपने लाड़ले देवर से अपने प्रियतम को बुलाने की बात कहती है। प्रियतम खबर पाकर जल्दी आता है। पत्नी पति से सीधे नहीं कहकर यों कहती है-
‘लाज सरम केरऽ बतिया, आहे परभु बतिया न हे।
परभुजी, हँसि हँसि बाँधल मोटरिया, खोलैतेॅ घर रोदन हे।’

अर्थात् जिस गठरी को हमलोगों ने हँस-खेलकर बाँधा, आज उसके खुलते समय दर्द से मैं बेचैन होकर रो रही हूँ।
इस गीत में सौन्दर्य का वर्णन और गर्भ के लिए ‘गठरी बाँधने’ का प्रयोग बहुत ही अभिव्यंजक हुआ है। इसके अतिरिक्त पति-पत्नी का पारस्परिक उत्कट प्रेम, भारतीय नारी का शील, सौंदर्य, पारिवारिक समृद्धि और सौहार्द भी वर्णित है।

गोरी बेटी अँगहुँ<ref>अंग की</ref> के पातर<ref>पतली</ref>, अँखिया मिरिग मारै हे।
ललना, मारै करेजवा में तीर, काहे जगाएल हे॥1॥
सासु मोरा सुतली अँगनमाँ, ननदो घर भीतर हे।
ललना रे, हुनि परभु रँगमहलिया, हमें कैसे जगाएब हे॥2॥
जुअवा खेलैतेॅ तोहें देवरे, कि देवरे लटवाले<ref>घुँघराले बालों वाले</ref> हे।
देवरे, भैयहिं<ref>भैया को</ref> आनुगन बोलाइ<ref>बुलाकर लाओ</ref>, कहबैन<ref>कहिएगा</ref> बोलइ के हे॥3॥
अँगहुँ पकड़ि जगाबल, हँसि पुछे बतिया हे।
दादा, तोरी धनि दरदे बेयाकुल, कि तोहें बुलाहटि<ref>बुलाहट</ref> हे॥4॥
हँथिया नेरैलन हँयसरबे, घोड़बा नेरैलन<ref>बाँधा, छोड़ दिया</ref> घोड़सरबे न हे।
ललना रे, लपकि पैसल घर भीतर, कहु धनि कूसल हे॥5॥
लाज सरम केरऽ बतिया, आहे परभु बतिया न हे।
परभुजी, हँसि हँसि बाँधल मोटरिया<ref>गठरी बाँधी; यहाँ गठरी बाँधने का तात्पर्य गर्भ से है</ref> खोलैतेॅ घर रोदन हे॥6॥

शब्दार्थ
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