भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गोली चलाने से पलाश के फूल नहीं खिलते / रोहित ठाकुर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गोली चलाने से पलाश के फूल नहीं खिलते
बस सन्नाटा टूटता है
या कोई मरता है

तुम पतंग क्यों नहीं उड़ाते
आकाश का मन कब से उचटा हुआ-सा है
तुम मेरे लिए ऐसा घर क्यों नहीं ढूंढ़ देते
जिसके आंगन में सांझ घिरती हो
बरामदे पर मार्च में पेड़ का पीला पत्ता गिरता हो

तुम नदियों के नाम याद करो
फिर हम अपनी बेटियों के नाम किसी अनजान नदी के नाम पर रखेंगे
तुम कभी धोती-कुर्ता पहनकर तेज कदमों से चलो
अनायास ही भ्रम होगा दादाजी के लौटने का

तुम बाजार से चने लाना और
 ठोंगे पर लिखी कोई कविता सुनाना