गौरी पसाहिन करिये गे माइ / अंगिका लोकगीत
उबटन की विधि संपन्न करने के लिए स्त्रियाँ एकत्र हुईं।दासी से बरात में साँप नाचने, डमरू बजने और भाँग के नशे में झूमते हुए लोगों के आने की खबर से लड़की की माँ ने लड़की को घर के भीतर छिपा लिया और विवाह करने से साफ इनकार कर दिया। लड़की के पिता ने अपनी प्रतिष्ठा जाते देखकर अपनी पत्नी को समझाया-‘तुम मेरी इज्जत क्यों ले रही हो? विवाह की विधि संपन्न होने दो। स्वयं त्रिभुवननाथ दुलहा बनकर आये हैं।’
इस गीत में लड़की की माँ और पिता का बहुत ही स्वाभाविक चित्रण हुआ है।
गौरी पसाहिन<ref>उबटन की विधि, मिला. पसाई= एक प्रकार की पहाड़ी राई</ref> करिये<ref>करो</ref> गे माइ, गायब मंगल चारि।
खार खूर<ref>खार-खूर छुड़ाने की विशेष विधि, इस विधि में स्नान कराकर मैल छुड़ाया जाता है</ref> सब हमहिं छोरायेलें<ref>छुड़ाया</ref> पहिरन केचुआ<ref>कंचुकी; अँगिया</ref> सारी हे॥1॥
अलारी<ref>‘दुलारी’ का अनुरणानात्मक प्रयोग</ref> दुलारी से बेटी गौरी बेटो, सेहो रे सहत<ref>उपवास करेगी; सहन करेगी</ref> कते<ref>कितना</ref> बेरी<ref>समय</ref>।
देखहिं गे चेरी बेटी पौरी<ref>‘पगरिया’ का अनुवादात्मक प्रयोग, मिला. पौरी=ड्योढ़ी</ref> पगरिया<ref>पगड़ी; यहाँ पगड़ी गिनने से तात्पर्य है</ref>, कत दल आबै बरियात हे॥2॥
साँप नचैते आबै डमरू बजैते आबै, घुरुमैते<ref>घुमड़ते हुए; झूमते हुए</ref> आबै बरियात हेह।
धिआ लय मनायनि<ref>गौरी की माँ</ref> मंडिल<ref>घर का भीतरी भाग; कोहबर</ref> पर पैसब, निकुठल<ref>निराश</ref> जैते बरियात हे॥3॥
सेहे सुनि बेटी बाप मनहिं बेदिल भेल, पति नहिं<ref>प्रतिष्ठा, इज्जत</ref> रहत हमार हे।
हुए दिअ<ref>होने दो</ref> हुए दिअ गोरी के बिहा<ref>विवाह</ref>, बर छिका तिरभुवन ठाकुर हे॥4॥