भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ग्लोबल / सारिका उबाले / सुनीता डागा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तपती धूप में
जलता हुआ पलाश
करता है इशारे
अपने पास जलकर बुझी हुई
मेरे सपनों की राख
बचाए रखने के लिए शायद ।

कहते हैं कि
राख से निकलता है
फ़ीनिक्स
पर
सभी चिड़ियों-परिन्दों का
कौर पचाया है
इन गगनचुम्बी टॉवर्स की
पाशविक तरंगों ने
राजहंस के उगले
रत्नहार की तरह
थोड़े ही होता है
सभी का नसीब ?

चार पैर और
पँख हैं ऐसे सभी
धीरे-धीरे
समेट रहा है आकाश
अपने भीतर
और यह दरारें पड़ी
ज़मीन भी है तैयारी में
बचा हुआ सब
अपने में समा लेने को ।

मूल मराठी से अनुवाद : सुनीता डागा