भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घंगतोळ् / धनेश कोठारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तू हैंसदी छैं/त

बैम नि होंद

तू बच्योंदी छैं/त

आखर नि लुकदा

तू हिटदी छैं/त

बाटा नि रुकदा

तू मलक्दी छैं/त

द्योर नि गगड़ान्द

तू थौ बिसौंदी/त

ज्यू नि थकदु

तु चखन्यों कर्दी/त

गाळ् नि होंदी

तू ह्यर्दी छैं/त

हाळ् नि होंदी

तू बर्खदी बि/त

खाळ् नि होंदी

तू चुलख्यों चड़दी/त

उकाळ् नि होंदी

पण....

भैर ह्यर्दी/त

भितर नि रौंदी

भितर बैठदी/त

घंगतोळ् होंद