सुरता आथे सुखरा डोकरा
सन के गुढुवा* आँटत ढेरा*!
मचिया बइठे चोंगी पीयत
माखुर थैली धर पठेरा*!
दू आखर गावय बांस गीत
अउ चार आखर लोरिक चंदा!
अरखावत सुार बीच बीच
हे मया मोह जवर फंदा!
अइसन गावत नाती नतुरा ल
कउन आज भुरियावत* हे!
आँखी समुंहे म आ जाथे
संझवती गरूवारी बेरा!
चिरइ चिरगुन के चहचहाब
चर चहक त जावब बसेरा!
बेंदरा भलुवा संग मदारी
देवार भड्डरी के डेरा!
झंपुली भर साँप धरे लहुटब
हंफरत गठरी धर सपेरा!
नंदी बैला डमरू धुन
अब कहाँ कहुं बौरावत हें !
घुघरू कौड़ी रिग बिग सोहय
गर म टिकली* अउ बलही* के !
रूनझुन बाजय पैरी खनकय
जइसे टूरी मलमलही* के !
गोड़ म गोड़ायत* गर लहंगर*
खडफ़ड़ी* बंधाये हरही* के !
तभो छिनभर न रीत* रहय
मुंह गोड़ ह जबर लपरही* के !
छइहाँ बिन अब तो बरदिहा*
बरदी ल नइ ठोरियावत* हें!
घंघरा घुघरू घुम्मरर घांटी
गरूवारी* बेरा जब बाजंय!
बंसुरी के धुन म ,वाल बाल
जइसे सब लइका मन नाचय!
बुड़ती बेरा ललहूं सुरूज के
लाल किरन जब धुर्रावय!
चरवाहा मन के चेहरा चुपरे
राम राज जइसे भावय!
सिरमिट गिट्टी के खोर गली
अब धुर्रा कहाँ उड़ावत हें!
रभावत दौडय़ रामबती अउ
हुंक रत आवय परबतिया!
गंगाजल भोजली के संग म
तरिया बर जावय दुरपतिया!
लीपे पोते अंगना डेहरी म
चौक पूरय जब क रमौतिन!
तुलसी चौरा अन्न के कोठी
ल दीया देखावय अमरौतिन!
अब ऊवत अंगन बटोरब
बूड़त दीयना देब भुलावत हें!
अब हाथ हाथ भर के मुनगा
अउ गज भर लमा परोड़ा!
देहे बर नइ आवय पूछत
दीदी मयारूक मनटोरा!
गन्ना रस लोटा भर पीले
खाले जी भर गुड़ के भेली!
अब अंतस ले घनवारा* म
हे क उन कहइया बरपेली* !
अपरिधहा* होवत जावत हें
अउ मनमाने पगुरावत हें!
ओ हटवारा के बर पीपर
अउ ठाकुर दइया के गस्ती!
ओ तरिया पार के बेल पेड़
डूमर बोहार बस्ती बस्ती!
बिही बगइचा सीता फल
अउ आम जाम कांदा बारी!
ओ धाप धाप* भर अमरइया
के छाँव परागय संगवारी!
अमहा जमहा अउ पिपरहा
सब ठौर के नाव नदावत* हें!
- हिन्दी अरथ – गुढुवा : लकड़ी में गूँथा हुआ रस्सी का ढेर, ढेरा : हाथ से गूँथे रस्सी के ढीलेपन को बल देने हेतु लकड़ी या धातु का उपकरण, पठेरा : मिट्टी की दीवाल में छोटे-मोटे सामान रखने या दीया-चिमनी रखने हेतु बनाई गयी जगह, भुरियावत : लोरी गाकर सुनाया या पुचकारना, टिकली : माथे या शरीर के अन्यय भाग में मौलिक रंग के अतिरिक्त छोटी-छोटी बिंदी जैसे छींटें, बलही : जिसका हल्का लाल-पीला रंग हो, गोड़ायत : अत्य्धिक चंचल युवती, गर लहंगर : भगेड़ू जानवर के पैर में बाँधा जाने वाला लकड़ी का टुकड़ा, खडफ़ड़ी : अधिक भगेड़ू जानवर के गले में लटकाया गया लकड़ी का मोटा एवं चार-पांच फीट टुकड़ा, हरही : जानवर के गले में बाँधने लक ड़ी से बनी घंटी, हरही : नजर चुराकर खेत खलिहानो में बारंबार जाने वाली गाय, रीत : खाली या रिक्त, लपरही : मुँह मारने वाली, बरदिहा : किसानों के गाय-बैल चरवाहा, ठोरियावत : इकट्ठा करना, गरूवारी : गोधूलि बेला, घनवारा : गन्ने के खेत में स्थापित गुड़ बनाने हेतु चरखे की जगह, बरपेली : बरबस आग्रह, अपरिधहा : अपने लिये सोचने वाले या स्त्रील, धाप : लगभग मील भर की दूरी, नंदावत : विलुप्त होना