भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घंटा / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
घड़े में घुसा बैठा घंटा
न कोई खतरा
न कोई टंटा
कि बजे
फिर
दिन-दहाड़े
नींद के पहाड़ के
आगे पिछवाड़े
रचनाकाल: २६-१०-१९६७