भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घटना के तौर पर / राम सेंगर
Kavita Kosh से
जीवन से रू-ब-रू
अब तक जो जिया उसे और-और रून्ध कर
एक नई शक़्ल दे कुम्हार !
आँखों की गोखरू
निकाल कर हथेली पर
रखे-रखे घूम, झूम,
घटना के तौर पर
कभी न कभी कूदेगा
पर्वत से क्षण का लँगूर !
जीवनगत-सच की
इस उफनाती धार में
फेंक कर स्वयँ को
अनुभूतियाँ इकट्ठी कर
गुम्बद का मौन
मुखर होना है
एक दिन ज़रूर !
बदली के गूदड़ फैलावों में
समाधान खोज रहा
जो लँगड़ी प्यास का
उस देशाचार को नकार !
जीवन से रू-ब-रू
अब तक जो जिया उसे और-और रून्ध कर
एक नई शक़्ल दे कुम्हार !