भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घटिया सी एक शराब है शातिर की दोस्ती / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
घटिया सी एक शराब है शातिर की दोस्ती ।
सीने का एक घाव है शातिर की दोस्ती ।।
अपनी ज़मीर, अपनी ज़मी, देख कर चलो ।
मतलब का इक पड़ाव है शातिर की दोस्ती ।।
छोटी सी एक बात पर रख देगा तोड़ कर ।
बनिये का भाव-ताव है शातिर की दोस्ती ।।
उसकी फ़रेबदार जुबाँ पर न जाइए —
नेता का इक चुनाव है शातिर की दोस्ती ।।
जितना यक़ीन करते गए डूबते गए ।
टूटी सी एक नाव है शातिर की दोस्ती ।।
सम्बन्ध टूटने के बाद कहते फिरोगे —
नासूर का रिसाव है शातिर की दोस्ती ।।