भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घनघोर मोह से घेराइल / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’
Kavita Kosh से
धन चोर मोह से घेराइल
अपना मन के सँकरी गली में
अब हम अकेले
बउआत ना फिरेब।
तहरा के अकेल बाँह से बान्ह के
घेर-घर के छोट करे क फेर मेभें
बन्हा गइलीं, कसा कइलीं।
जब हम तमरा के
अखिल विश्व का विस्तार में
पा सकेब, पहचान सकेब,
तब हम सचहूँ तहरा के बइठा सकेब
अपना हृदय का आसन पर
हृदय सिंहासन पर।
हमार हृदय त छोट एगो टहनी ह,
खिलल बा जवना पर विश्व-कमल;
ओही पर देखा बऽ प्रभु आपन प्रकाश पूर्ण
ओही विश्व कमल पर आपन तूं दर्शन द।