घनश्याम तेरा नाम जो रटते कभी नहीं ।
भवसिंधु है अथाह वे तरते कभी नहीं।।
जिनकी निगाह में है बसी रूप माधुरी
संसार के व्यामोह में फँसते कभी नहीं।।
रसना ने जिन की नाम रस का पान कर लिया
छप्पन पदार्थ भोग के जँचते कभी नहीं।।
एक बार बाँसुरी जो सुने तेरी साँवरे
माया के मोह पाश में बंधते कभी नहीं।।
मन के निलय में साँवरे तुम यूँ अटक गये
आते हो फिर भी दिल से निकलते कभी नहीं।।
युग बीत चले देख देख राह तुम्हारी
कहते हैं लोग तुम यहाँ मिलते कभी नहीं।।
घनश्याम एक बूँद प्रणय-बिंदु के लिये
प्यासे हृदय पे तुम ही बरसते कभी नहीं।।