घनश्याम मदनमोहन प्यारे / रंजना वर्मा
घनश्याम मदनमोहन प्यारे, तुम मन के द्वारे आ जाना
अब तक जैसे है साथ दिया, आगे भी प्रीत निभा जाना
नयनों की यमुना के तीरे, अंसुअन की घास घनी उगती
गोपाल कन्हैया बनवारी, तुम गउएँ यहीं चरा जाना
मथ मथ कर भावों के दधि को, संयम की कठिन मथानी से,
मन का नवनीत निकाला है, मनमोहन भोग लगा जाना
है भक्ति न ज्ञान न आराधन, अपने पर का भी ज्ञान नहीं,
हे कृष्ण कन्हैया बनवारी, नयनों की प्यास बुझा जाना
है प्रीति प्रतीति नहीं जानी, जाना न रिझाना प्रियतम को
ये मोहमयी निद्रा गहरी, प्रिय आ कर मुझे जगा जाना
कल्याण किया करते जग का, मैंने केवल निज तन पाला,
हूँ भ्रमित हुई चौराहे पर, सच - पन्थ हमें दिखला जाना
जो चोट करारी उर अंतर, वो मैं जानूँ या तुम जानो
अब चाह यही निज मूरत पर, यदुनन्दन हमे लुभा जाना