भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घमंड / मुंशी रहमान खान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अति घमंड नाशै पुरुष चारेहु युग परमान।
मद आते जर्मन रहे कियो यूरुप संग्राम।।
कियो यूरुप संग्राम ग्राम पुर देश जराये।
मिली न एकौ इंच जिमीं धन प्राण गँवाये।।
कियो नाश सिंहासन अपना रह गए मलते हाथ मंद मति।
कहैं रहमान गुमान न करते रहते धन जन पूर सुखी अति।।