घरवा से इकसल जसोदा रानी, सुभ दिन सामन हे / मगही
घरवा से इकसल<ref>निकलीं</ref> जसोदा रानी, सुभ दिन सामन<ref>श्रावण मास</ref> हे।
ललना, जमुना के इरि झिरि<ref>मन्द-मन्द झर-झर बहने वाला</ref> पनियाँ सोहामन हे॥1॥
सात पाँच मिललन सँघतिया<ref>संगी-साथी</ref> से सोने घइला<ref>घड़ा</ref> माथे लेलन हे।
गावहिं मंगल गीत, देखत सुर मोहहिं हे॥2॥
केउ सखी मुँह धोवे, केउ सखी हँसि हँसि पानी भरे हे।
ललना, केउ एक पार तिरियवा कपसि<ref>सिसक-सिसक कर</ref> लोर<ref>अश्रु</ref> ढारइ हो॥3॥
नइ<ref>नहीं</ref> हकइ<ref>है</ref> नावोड़िया<ref>छोटी डोंगी</ref> अउरो मलहवा भइया हे।
ललना, केहि विधि उतरब पार, तिरिया एक रोवइ हे॥4॥
बाँधि के काँछ कछौंटा<ref>आँचल कमर में बाँधना, कच्छा कसना</ref> अउर छाती<ref>वक्ष-स्थल</ref> घइला लेइ हे।
जाइ जुमल<ref>पहुँच गई</ref> जमुना पार, काहे गे तिरिया रोवहिं गे॥5॥
की<ref>क्या</ref> तोर नइहर<ref>नैहर, मायका</ref> दूर कि सासुर<ref>ससुराल</ref> दुख पड़ल हे।
तिरिया, की तोर कंत बिदेस कवन दुख दुखित हे॥6॥
नइ मोरा नइहर दूर, न सासुर दुख पड़ल हे।
नइ मोरा कंत विदेश, कोख<ref>कुक्षि, गर्भ</ref> दुख दुखित हे॥7॥
सात पुतर दइब<ref>दैव</ref> देलन, कंस सभ हर लेलन हे।
ललना, अठवें गरभ नगिचायल<ref>नजदीक हुआ</ref> सेकरो<ref>उसका भी</ref> भरोसा नइ हे॥8॥
चुप रहुँ, चुप रहुँ देवोकी, त सुनह बचन मोरा हे।
अपना बलक मोरा दींहऽ त हम पोस-पाल देबो हे॥9॥
नौन,<ref>नमक, लवण</ref> चाउर<ref>चावल</ref> तेल पइँचा<ref>लौटा देने के लिए ली हुई वस्तु</ref> भेल, सभे, चीज पइँचा भेल हे।
कोखवा उधार नइ सुनली, कइसे धीरजा बाँधव हे॥10॥
किया<ref>क्या</ref> साखी<ref>साक्षी</ref> सुरजवा त किया साखी गंगा माता हे।
ललना, किया साखी सुरुज के जोत, धरम मोर साखी हथि हे॥11॥
हो गेल<ref>हो गया</ref> कौल-करार<ref>परस्पर वचनबद्धता, प्रतिज्ञा</ref> बचन हम पालब हे।
लाख देतन मोरा कंस तइयो<ref>तब भी</ref> नई मानब हे॥12॥
आयल भादो के रात, किसुन<ref>कृष्ण</ref> पख<ref>पक्ष, पखवारा</ref> अठमी हे।
लिहलन किसुन अवतार, सकल जग जानहु हे॥13॥
खुल गेल बजर केवाँड़, पहरु<ref>पहरुवा, पहरेदार</ref> सभ सूतल<ref>सोया हुआ, निद्रित</ref> हे।
देवोकी ले भागलन जसोदा के द्वार, महल उठे सोहर हे॥14॥
जो एहि मंगल गाबहिं गाइ सुनावहिं हे।
जलम-जलम<ref>जन्म-जन्म</ref> अहियात<ref>सौभाग्य। अहिबात-सं. अभिवाद?, अविधवात्व</ref> पुतर फल पावहिं हे॥15॥