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घर-गिरस्ती / गिरिराज किराडू
Kavita Kosh से
आइए, आपका सबसे तआरूफ़ करा दूँ । ये हमारी चप्पले हैं । इन्होंने चुपचाप चलते रहने के ज़दीद तौर-तरीकों पर नायाब तज़ुर्बे किए हैं । इनसे आप शायद पहले भी मिले हैं । ये हैं हमारी शर्ट सालों-साल जीने का नुस्ख़ा इनकी जेब में ही पड़ा रहता है, गो दिखातीं किसी को नहीं । ये बैल्ट हैं, हर लम्हा जिसके चमड़े से बनी हैं, उस क़ाफ़िर की आत्मा की शांति के लिये दुआ करती रहती हैं । और ये हमारा चश्मा साफ़ देखने की इनकी इतनी तरक़ीबें नाकाम हो चुकी कि सिवा ग़फ़्लत अब कुछ नज़र ही नहीं आता इन्हें -– यही अपनी घर-गिरस्ती है
इसे देखकर आपको चाहे कोई वीराना याद आए । हमें तो कुछ सहमी कुछ संगीन अपनी ही याद आती है ।