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घर-घर के दर्शन / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'

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घरें-घरऽ के लूटै, घरें करै हलाल
घर टूटै छै कत्ते, केकरा अरे मलाल
गुज-गुज करै छै रात, सुनै कहाँ छै बात
बनलै यहाँ कहाँ रे, धुंध के मशाल?
मौत रऽ तबाही, मिलै कहाँ गवाही
डालै डगर रे फंदा, बनी के रे दलाल
रहलै कहाँ फिरंगी, फिरू चाल ई दुरंगी!
पूछै छै भय के मारें, कैन्हें यहाँ बबाल?
कत्ते रे आरो लुटतै, बेमौत आरो मरतै
करऽ नै सरजमीं के, आरो लहू सें लाल।
कत्ते यहाँ रे धथुरा खैतै कहें रे मथुरा
करतै कहें यहाँ रे, कत्ते दिनें फलाल?
एक घर हँसे छै, एक घर जरै छै
घरें पूछै छै मथुरा, कहाँ छै दीन-दयाल? घरें...