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घर की अँखियान कौ सुरमा जो हते / नवीन सी. चतुर्वेदी
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घर की अँखियान कौ सुरमा जो हते।
दब कें रहनौ परौ दद्दा जो हते॥
बिन दिनन खूब’इ मस्ती लूटी।
हम सबन्ह के लिएँ बच्चा जो हते॥
आप के बिन कछू नीकौ न लगे।
टोंट से लाग’तें सीसा जो हते॥
चन्द बदरन नें हमें ढाँक दयो।
और का करते चँदरमा जो हते॥
पेड़ तौ काट कें म्हाँ रोप दयौ।
किन्तु जा पेड़ के पत्ता जो हते॥
देख सिच्छा कौ चमत्कार ‘नवीन’।
ठाठ सूँ रहतु एँ मंगा जो हते॥