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घर की याद-1 / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
Kavita Kosh से
घर छोड़े वर्षों बीत गए
मैं हिमगिरी पर हूँ घूम रहा
देखता दृश्य जब नए-नए
वर्षा भी, बर्फ़ानी पहाड़
घनघोर शोर करती नदियाँ
सुनसान पर्वतों पर फैली
पीड़ा से पीली चांदनियाँ
नव-देवदार के जंगल में
छिप कर गाने वाली चिड़ियाँ
ये ही सब मेरे साथी रहे
घर छोड़े वर्षों बीत गए