भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर की याद-2 / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं किस प्रदेश में आ पहुँचा

है चारों ओर घिरे पर्वत
जिनका हिम झरनों में झरता
जिनके प्राणों को झरनों का
संगीत मधुर मुखरित रखता

जिनके नीचे सुंदर घाटी
धानों की पीली पड़ी हुई
जिससे सुगंध की मृदु लहरें
मरूत में उड़ती विकल रहीं

पर्वत से निकली हुई नदी
घाटी में गाती घूम रही
अपने लहरीले हाथों में
हिम के फूलों को नचा रही

जिसके तट पर फूलों से पड़
पीली लतिकाएँ झुकी हुईं
भौरों के व्याकुल चुम्बन से
आवेश-अवश हो काँप रहीं