अब ये आँखें बाहर के सुख से
उदासीन अति होकर के
अपने ही दुख के सागर में
धीरे-धीरे हैं ढलक रहीं
अब इन्हें न बहला पाएगी
इस सारे जग की सुन्दरता
कोई भी रोक नहीं सकता
अब आँसू का झरना झरता
अब ये आँखें बाहर के सुख से
उदासीन अति होकर के
अपने ही दुख के सागर में
धीरे-धीरे हैं ढलक रहीं
अब इन्हें न बहला पाएगी
इस सारे जग की सुन्दरता
कोई भी रोक नहीं सकता
अब आँसू का झरना झरता