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घर की याद / बालकृष्ण काबरा 'एतेश' / कार्ल सैण्डबर्ग
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समुद्री चट्टानों के पास है हरी काई।
चीड़ की चट्टानों के पास लाल बेर।
मेरे पास है तुम्हारी यादें।
मुझे बताओ कि मेरी कमी तुम्हें खटकती है कैसे।
बताओ कि दिन हो जाता कितना लम्बा, रेंगता धीरे-धीरे।
बताओ मुझे अपने दिल की कसक,
शूल-सी चुभती लम्बे दिनों की कसक।
मुझे पता है समय का खालीपन
जैसे दुर्दिन में किसी भिखारी के टिन का कटोरा,
खाली जैसे एक हाथ खो चुके
किसी सैनिक की आस्तीन
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा 'एतेश'