भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घर के हिस्से चार हुए / रामश्याम 'हसीन'
Kavita Kosh से
घर के हिस्से चार हुए
माँ-बापू लाचार हुए
दुख आया तो अपनों के
दर्शन तक दुश्वार हुए
मर जाना भर शेष रहा
हमपे इतने वार हुए
दुनियादारों में रहकर
हम भी दुनियादार हुए
कुछ सपने तो टूट गए
कुछ सपने साकार हुए