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घर छै कि गोहाल छै / धीरज पंडित

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गैया के जोरे मं बछिया पार छै
हय जानी केॅ गॉव वाला केॅ
हमरा से खार छै
भैया, कैन्हों ई संसार छै!

कहै छै तोरोॅ गोहाली रेा हय हाल छौ
कहला तरोॅ मं नय कोय माल छौ
कि करियै जानबर दु-चार छै
भैया, कैन्होॅ ई संसार छै!

बकरी के जोरै छी, तं भागै छै नेमना
गैया के मक्खर भागवै मं जरावै छी धूमना
सानी लगावै मं धरलोॅ कचार छै
भैया, कैन्हों ई संसार छै!

घरोॅ सं खुलतोॅ तं जइतोॅ बहियार
चरी-बुली केॅ होतों फरार
नय जानोॅ हेकरा कथी से प्यार छै
भैया, कैन्हों ई संसार छै!

बछवा के अलगे अजुबे ई हाल छै
ढकतरोॅ तं लगतों अइलो कोय काल छै
बोलबोॅ जों कुछु तं धरलोॅ मार छै
भैया, कैन्हों ई संसार छै!

चिकरला भोकरला सं कोय नय मानै छै
ऐतेॅ समझावै छी गामेॅ कि जानै छै
कोय कि जानै ‘धीरज’ कैन्हेॅ लाचार छै
भैया, कैन्हों ई संसार छै!