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घर नदी का सिन्धु / रमेश रंजक

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घर नदी का सिन्धु होता है
रात में, दिन में, कभी जो नहीं सोता है ।

नदी की औक़ात घटती है
बिना सागर मिलन के
पूज्या वह साधना है
पाँव जिसके पास ’पन’ के
’पन’ रुकावट के लिए होकर चुनौती
              एक पल भी नहीं खोता है
              घर नदी का सिन्धु होता है ।

नदी मधु की गति मिला देती है जब
जलमय लवण से
हो चुकी अस्तित्त्वहीना
सिन्धु की जब प्राण-प्रण से

काँप जाता है अतुल जलराशि का संसार सारा
लहर कर आती नदी के चरण धोता है
घर नदी का सिन्धु होता है
रात में, दिन में, कभी जो नहीं सोता है ।