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घर में रमती कवितावां 6 / रामस्वरूप किसान

म्हैं म्हारी
छात री छात

ईं वास्तै ई
जद-जद चढूं
बा धूजण लागै
सोचै-
हो नीं जावूं कदे
बिना छात री छात।